वैलेंटाइन डे (Valentine Day): हमारे समाज की वह बुराई जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं
it's we, who have promoted immorality as something desirable
वैलेंटाइन डे (Valentine Day ): हमारे समाज की वो बुराई जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं
आज हमारा समाज उस ओर जा चुका है जहाँ सिर्फ दिखावे पे ज्यादा ध्यान दिया जाता है | आज सोशल मीडिया का बहकावा इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि कुछ भी काम करने से ज्यादा उसको दुनिया को दिखाना ज्यादा जरूरी समझा जाता है | आज इस दिखावटी ज़माने का एक दिखावटी संतान भले ही अपने माता पिता से बात तक नहीं करता है लेकिन “फादर्स डे” और “मदर्स डे” पर सोशल मीडिया में विज्ञापन देकर इस दिखावटी दुनिया से झूठी लाइक्स जरूर पाता है | ये तो हमलोगो की तहज़ीब का एक हिस्सा है कि हम अपने माता पिता की सेवा करें , उनकी आज्ञा का पालन करें | ये तो पुण्य का काम है , लेकिन आज हमलोग ऐसे दिखावटी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ हम अपनी तहज़ीब को भुला कर , एक झूठी दिखावटी दुनिया तैयार कर बैठे हैं |
प्रेम ,प्यार ,मुहब्बत या अंग्रेजी में कहा जाये तो LOVE ; जैसे ही इन में से कोई भी शब्द हमें सुनाई देता है हमलोग घबरा जाते हैं, या ऐसी प्रतिक्रिया देने लगते हैं मानो कुछ ऐसा सुन लिया जैसा कि नहीं सुन ना चाहिए था|और इसी संकोच और शर्म वाली प्रतिक्रिया का फायेदा उठाकर पश्चिमी सभ्यता का नंगापन हमारे नौजवानों में घुस गया है |
Advertisement
चूँकि हमलोग खुद अपने बच्चों तक प्रेम , मुहब्बत LOVE इत्यादि का असल मतलब अच्छी तरह से नहीं पहुंचा सके इसलिए हमारे बच्चे बाहर से आये हुए खुलेपन को कामयाबी और आज़ादी समझ कर अपना बैठें हैं | सोशल मीडिया और दूसरों को दिखाने की होड़ में हमारे बच्चे सही ग़लत में फ़र्क़ किये बिना हर वो चीज़ जो विदेशी है उसे अच्छा समझ कर अपना बैठें है | और इसी दिखावटी होड़ में न जाने कब “पिता जी ! आप की तबियत कैसी है ?” वाली हमलोगों की तहज़ीब “Dad तुम कैसे हो ? ” में बदल गयी |और न जाने कैसे हमलोग जो अपने अम्मी अब्बू के पैर दबा कर दुआ लेने वाले लोग थे, सिर्फ सोशल मीडिया में “हैप्पी फादर्स डे ” का स्टेटस लगाकर खुश होने लगे |
आईये आज के माहौल में जिस तरह से वैलेंटाइन डे मनाया जाता है उसको समझतें है |
पश्चिमी सभ्यता से आयात की गयी ये वैलेंटाइन डे की प्रथा या रिवाज़ आजकल हमारे यहाँ ज्यादा मशहूर हो चुकी है और ये एक व्यंग हीं है कि हमारे समाज ने और ख़ासकर नौजवानों ने इस प्रथा को इस तरह कबूल किया है जैसे की हमारी संस्कृति में और हमारी तहज़ीब में तो लोग प्रेम और मुहब्बत का मतलब ही नहीं जानते हों |
फ़रवरी का महीना आते ही सोशल मीडिया पे होड़ लग जाती है वैलेंटाइन डे को प्रेम और मुहब्बत का प्रतीक बताने की | 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे की तस्वीरों से पूरा सोशल मीडिया भरा होता है | प्रेम को फैलाना , दुनिया में प्रेम को बढ़ावा देना ये सब तो बहुत अच्छी बात है लेकिन जिस तरह से इस वैलेंटाइन डे में सिर्फ एक ख़ास रूप के प्रेम को प्रचलित किया जाता है वो अपने समाज के लिए न सिर्फ बुरा है बल्कि हानिकारक भी है |
14 फ़रवरी वाले पूरे सप्ताह के हर एक दिन को ,कोई न कोई बहकने वाला नाम देकर सोशल मीडिया के जरिये अच्छी अच्छी कमाई की जाती है | किसी दिन को गुलाब देने का दिन, तो किसी दिन को प्रोपोज़ करने का दिन , तो किसी दिन को चूमने का दिन | और ऐसी ही बहकाने वाले नाम देखकर हमारे नौजवान भटक रहें है |
स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटी तथा आधुनिक संस्थानों ने इन चीज़ों को इतना प्रोत्साहित किया जैसे हमारे बच्चे वहां पढ़ने के बजाये यही सब करने गए हों |एक युवा और युवती अपने प्रेम प्रसंग को इस तरह से विज्ञापन की तरह दिखातें हैं जैसे की मानो प्रेम का कोई और रूप ही न हो | और सच पूछिए तो उनका प्रेम भी सिर्फ दिखावटी ही होता है जो सिर्फ सोशल मीडिया पर दिखाने के काम आ सके |
आप खुद सोचिये क्या जो एक माता पिता अपने बच्चों से प्यार करते हैं वो प्रेम नहीं ? या फिर जो एक गुरु अपने शिष्य से प्रीति रखतें वो प्रेम नहीं ? एक इंसान दुसरे के दुःख सुख़ में जो सांत्वना दिखाता है क्या वो प्रेम नहीं है ? या फिर एक पति पत्नी में जो प्रेम है वो प्रेम नहीं ?
हमारी तहजीब तो वो थी की हमलोगो ने दुनिया को प्रेम और सद्भावना का पाठ सिखाया और आज हमलगो पर ही एक गलत रीति थोपी जा रही है और हम सिर्फ ये समझ कर उसे अपने रहे हैं क्यूंकि वो विदेशी है तो अच्छा ही होगा |
वैलेंटाइन के पीछे की सच्ची कहानी तो किसी को भी नहीं पता है लेकिन हर जगह अपने अपने हिसाब से मनघडंत कहानी बनाकर बताया जाता है | आज के ज़माने में अलग अलग अलग ढंग से इसी वैलेंटाइन डे का बहाना लेकर न जाने कितने ही अवैध प्रेम प्रसंगों को जायज़ और वैध ठहराने की कोशिश की जा रही है |
अपनी बात समझने के लिए मैं एक काका और निरहुआ के बीच हुई बहस को सुनाता हूँ |
(ये कहानी काकावाणी के फेसबुक वाल से ली गयी है )
काका : बहुत खुश लग रहे हो , क्या बात है ?
निरहुआ : valentine मना कर आ रहा हूँ इसलिए
काका : अच्छा ! क्या गिफ़्ट दिए ?
निरहुआ :गुलाब ,चॉकलेट , और भी बहुत कुछ
काका : और तुम्हारे दीदी को वैलेंटाइन डे पर क्या गिफ्ट मिला ?
निरहुआ: अबे मा***** , %$@@%% ##())(
काका :गाली क्यों दे रहे हो बे ! वैलेंटाइन क्या तुम्हारे अकेले के लिए था
ये छोटी सी कहानी आज के ज़माने में चल रहे वैलेंटाइन डे को अच्छे से प्रदर्शित करता है | अगर ये वैलेंटाइन डे सच में इतना ही अच्छा है और इसमें कोई बुराई नहीं तो फिर ये वही रिवाज अपने बहन , दीदी इत्यादि के लिए पूछने पर क्यों बुरा मान जाते हैं |
हमलोग माने या न माने लेकिन इस बुरे रिवाज़ के फैलने में हमारा समाज और कहीं न कहीं हमलोग खुद जिम्मेदार हैं | एक तो बचपन से ही हमलोगो के अंदर ये धारणा बैठाई जाती है की हर वो चीज़ जो विदेशी है अच्छी ही होगी | दूसरा हमलोगो को खुद के घर के अंदर के माहौल को बदलने की जरूरत है |
अपने ही घर में पति अपनी पत्नी को कभी कोई अच्छी गिफ्ट नहीं देता , न ही कभी उसे बाहर घूमाने लेकर जाता है | ये सब देखते हुए उन घरों के बच्चे बड़े होते होतें हैं , खासकर उस घर की लड़कियां | जब ये बच्चे बाहर जातें है और कोई उन् पर ज्यादा ध्यान देता है, उन्हें अच्छी गिफ्ट देता है तो वो सोचती हैं की ये तो बहुत अच्छा है | इस तरह जब वो अपने घर के माहौल से तुलना करतीं हैं तो उन्हें लगता है ये लड़का तो हमेशा मेरा ख्याल रखेगा | इसी तरह वो लड़के ये देख कर बड़े हुए होते हैं की अगर पापा ने मम्मी को एक गिफ्ट दिया तो घर वाले सब आँख चढ़ाते हैं, बुरा समझते है , तो वह ये सोचता है कि बाहर में ही अपने प्रेम का विज्ञापन देना ठीक है क्यूंकि घर वाले तो बुरा ही समझेंगे |
इसलिए अगर हमलोगो को इस कुरीति को ख़तम करना है तो अपने घर और समाज का आईना बदलना होगा | हमलोगो को अच्छी चीज़ों को बढ़ावा देना होगा और बुरे बातों के बारे में अपने बच्चों को आगाह करना होगा |
DISCLAIMER: The views and opinions expressed in this article are those of the authors and do not necessarily reflect the official policy or position of TheAinak.com
बिल्कूल हमें अपने बचों को बताना परेगा सही और ग़लत के बारे में सही तर्क क़े साथ।