
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2024: राजनीतिक भूचाल और आवाम के सवाल
दिल्ली का चुनावी मैदान इस बार कई सवालों, उम्मीदों, और राजनीतिक उठा-पटक के बीच सुर्खियाँ बटोर रहा है। जहाँ एक तरफ आम आदमी पार्टी (AAP) अपने पिछले प्रदर्शन को बचाने की कोशिश में है, वहीं ओखला और मुस्तफ़ाबाद जैसी विधानसभा सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने गहरी दरारें डाल दी हैं। साथ ही, बीजेपी और कांग्रेस भी अपनी राजनीतिक ताकत आज़मा रही हैं। परंतु इन सबके बीच, दिल्ली की आवाम के मन में क्या है? क्या वोटर सिर्फ़ सियासी दलों के नारों से प्रभावित हैं, या फिर उनकी प्राथमिकताएं बदल रही हैं? आइए, विस्तार से समझते हैं।
AAP का किला क्यों डगमगा रहा है?
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली की अधिकांश सीटों पर AAP का दबदबा रहा है, लेकिन इस चुनाव में ओखला और मुस्तफ़ाबाद जैसे इलाकों में हवा का रुख़ बदलता नज़र आ रहा है। स्थानीय मुद्दे यहाँ प्रमुख हैं:
- ओखला की बदहाली: सीवरेज लाइन, टूटी सड़कें, और बुनियादी सुविधाओं की कमी ने लोगों का गुस्सा AAP विधायक अमानतुल्लाह खान के खिलाफ भड़काया है। एक मतदाता ने मीडिया को बताया, “हमने वादे सुने थे, लेकिन काम नहीं देखा। इस बार हम नई क़यादत चाहते हैं।”
- AIMIM का ज़ोर: AIMIM ने इन सीटों पर स्थानीय नेताओं—ताहिर हुसैन (मुस्तफ़ाबाद) और शिफाउर रहमान (ओखला)—को उतारकर मुस्लिम वोटों पर जमकर काम किया है। शिफा उर रहमान, जो पिछले 5 साल से जेल में हैं, को “क़ौम की इज़्ज़त की लड़ाई” का प्रतीक बनाया गया है।
नफ़रत की राजनीति vs रोज़गार: आवाम की बुनियादी चिंताएँ
एक वोटर ने पोलिंग बूथ पर कहा, “हमें हिंदू-मुस्लिम के बजाय रोटी चाहिए।” यह बयान दिल्ली के युवाओं की मानसिकता को दर्शाता है:
- बेरोज़गारी का संकट: नौजवानों में नाराज़गी है कि सरकारें नौकरी के वादे भूल गईं। इसीलिए, इस बार युवाओं ने वोटर आईडी बनवाने और मतदान में भाग लेने में गंभीरता दिखाई।
- सुबह की लहर: आम धारणा के विपरीत, इस बार सुबह के पोलिंग समय में भी युवाओं की भीड़ देखी गई। एक युवा मतदाता ने कहा, “वोट डालकर दिमाग को सुकून मिला… अब 8 तारीख (नतीजे) का इंतज़ार है।”
मुस्लिम मतदाता: बेदारी या रणनीतिक वोटिंग?
दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में एक नया जागृति देखने को मिली है। लोग अब “मुस्लिम विरोधी” कही जाने वाली पार्टियों से दूरी बनाकर AIMIM जैसे दलों को मौका दे रहे हैं। इसका कारण है:
- सामुदायिक असुरक्षा: नागरिकता कानून (CAA) और हैट्रैड जैसे मुद्दों ने मुसलमानों को राजनीतिक रूप से सक्रिय किया है।
- ओवैसी का प्रभाव: असदुद्दीन ओवैसी ने दिल्ली में लगातार रैलियाँ करके शिफा उर रहमान के बलिदान को केंद्रित किया। उनका नारा—“जेल का जवाब वोट से देंगे”—लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ रहा है।
चुनाव आयोग और MCC उल्लंघन: AAP पर सवाल
चुनाव के दौरान AAP पर कई गंभीर आरोप लगे हैं:
- पोस्टर विवाद: बटला हाउस इलाके में AAP कार्यकर्ताओं ने MCC लागू होने के बाद भी पोस्टर चिपकाए, जिसके बाद पुलिस ने FIR दर्ज की।
- अमानतुल्लाह खान का विवाद: ओखला विधायक के समर्थकों ने पुलिस के साथ झड़प की, जिससे उनकी छवि को झटका लगा।
इन घटनाओं ने AAP की “साफ़ राजनीति” की छवि पर सवाल खड़े किए हैं।
क्या कहता है जनमत?
- ओखला और मुस्तफ़ाबाद: इन सीटों पर AIMIM के पक्ष में माहौल है, लेकिन AAP अभी भी मैदान में डटी है।
- बीजेपी की रणनीति: हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए राम मंदिर और राष्ट्रवादी मुद्दे उठाए जा रहे हैं।
- कांग्रेस की चुप्पी: पार्टी इस बार सीमित प्रभाव दिखा रही है, जिससे मुकाबला AAP और AIMIM के बीच सिमट गया है।
निष्कर्ष: वोटर की आवाज़ सबसे ऊपर
चुनाव का अंतिम दिन दिल्ली की सड़कों पर एक संदेश साफ़ था: “हमें विकास और इंसानियत चाहिए।” शिफा उर रहमान को जेल से छुड़ाने की भावनात्मक अपील हो या AAP पर अविश्वास—इस चुनाव में हर वोट एक सामाजिक बदलाव का संकेत है। 8 फरवरी को नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि दिल्ली ने “नफ़रत” को नकारा है या “बेदारी” को चुना है।
अंतिम शब्द: युवाओं से अपील—अपने वोटर आईडी ज़रूर बनवाएँ। वोट न डालना सिर्फ़ आपके अधिकार की अनदेखी नहीं, बल्कि देश के भविष्य को अनदेखा करना है।
लेखक: Theainak.com
स्रोत: दिल्ली के मतदाताओं और स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स से बातचीत पर आधारित।
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