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सरकार कहती है #लोकल खरीदो। ठीक। अच्छी बात है।

#लोकल_लो_बात Government suggests to buy #LOCAL

#लोकल_लो_बात
सरकार कहती है #लोकल खरीदो।
ठीक। अच्छी बात है।

हम कभी विदेश गए नहीं सामान खरीदने। ना जिस रेडमी मोबाइल से पोस्ट लिख रहा हूं इसे खरीदने चाइना गया। ना आज तक इंपॉर्ट कर के कुछ मंगवाया है। सब कुछ मुझ तक पहुंचा है, मैं ने अच्छा, सस्ता, देख कर खरीदा। सब यही करते हैं। मेरे बेटे के खेलोने मैं अच्छा सेफ देख कर क्यों ना लूं? मैं वाशिंग मशीन में कैसे चेक करू के कौन से पुर्जे विदेशी हैं?

मुझ तक ऐसी चीजें पहुंचा कौन रहा है जिस के पहुंचने से मेरे देश को कथित नुकसान हो रहा है? सरकार ऐसे देश के दुश्मनों का पता लगाएं जो सब कुछ मुझ तक पहुंचा रहे हैं और मुझे चुनने का अवसर दे रहे हैं। सरकार जब देश के दुश्मनों का पता लगा ले तो खुद को दो थप्पड़ खीच के मारे। और खुद को डांटे, के बाहर के सामान मंगवा कर बाज़ार को भरते क्यों हो?

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मैं अपने घरेलू बाज़ार से अपने और अपने बच्चो के लिए सस्ता, अच्छा, सेफ, मजबूत, टिकाऊ, वैल्यू फॉर मनी वाला प्रोडक्ट खरीदूंगा। जिसे जो करना है करे।
सिर की टोपी बांग्लादेश की मिलती है मार्केट में, वही पसंद है। चेहरे पे सही जमती है, तो वहीं खरीदूंगा ना। पापा को टोपी कश्मीर की (अपने ही देश की लोकल) पसंद है, मैं कश्मीर के लोकल शॉप से ऑनलाइन मंगवाता था, वहां अभी 2G आता है, सब बिजनेस बंद हो गया। अब नहीं मंगवा पाता कश्मीर से।

अगर बाहर की कोई चीज सस्ती मिल जाए और बहुत अच्छी क्वालिटी की हो तो क्या जानता बेवकूफ है के घर की मंहगी बेकार चीजें खरीदे। अगर देश में बनी सस्ती, अच्छी चीज़ मिल जाए तो क्या जनता बेवकूफ है के विदेशी चीजें खरीदे।

ये सारा गो लोकल कैंपेन एक फ्रौड है वैसे ही के जैसे सरकार ऐलान करे के नदी साफ करने में योगदान दीजिए। और खुद सरकार सारी फैक्ट्री और नालों को नदी में कचरा फेंकने दे।

ये गो लोकल फ्रॉड कैंपेन बहुत से देशों में इस लिए चलाया जाता है के जनता को बताया जा सके के ये जो आर्थिक मुसीबत है तुम्हारी अपनी लाई हुई है। तुम्ही देश के दुश्मन हो जो अपनी चीजें नहीं खरीदते। सरकार बेगुनाह है, वो तो तुम्हे समझाती है के बाहर का सामान मत खरीदो। तुम्हीं नहीं समझते। अमेरिका का राष्ट्रपति भी लोकल जॉब लोकल उत्पादन खूब चिल्ला रहा है, मगर उसके खुद के इलेक्शन कैंपेन का मटेरियल चाइना में छप रहा है और बन रहा है।

हां एक बात है के हमारे इस्तेमाल की चीजें हमारी जीवन शैली और लाइफ स्टाइल पे निर्भर है। अगर हमने जीवन शैली ऐसी अपनाई हुई है के जिस में गांव जंगलों की बनी चीजों से हमारा काम चल जाता है या हम ने अपने जीवन शैली में बहुत सी विदेशी चीजों को जगह नहीं दी हुई है, वो मेरे लाइफस्टाइल में सूट नहीं करती तो समस्या का समाधान है।

मगर जीवन शैली में बदलाव एक पूरी अलग बात है, बॉयकॉट चाइना, बॉयकॉट फलाना दूसरी बात।

अगर मेरी जीवन शैली में नारियल पानी, नींबू पानी है तो कोक और पेप्सी की ज़रूरत नहीं रहेगी। इसके लिए बॉयकॉट पेप्सी की ज़रूरत नहीं है। ना ही गो नींबू पानी कैंपेन की।

जीवन शैली बदलने वाला प्रोडक्ट का प्रचार नहीं करता ना किसी प्रोडक्ट का विरोध। उदाहरण के तौर पे, टेडीबियर का प्रचार नहीं होता, लव इज इन दी एयर, क्यूट, शो केयरिंग, वाली बातें होती है। जीवन में अपने आप टेडीबियर आ जाता है।

अगर आप की जीवन शैली गद्दे पे सोने वाली है तो आप चिटाई नहीं खरीदेंगे। अगर आप ज़मीन पे बैठ के खाना पसंद करते हैं तो डायनिंग टेबल नहीं खरीदेंगे।

किसी समाज की जीवन शैली बदलते बदलते बदलती है, दशकों लग जाता है। जब तक आप सरकार के बेवकूफ बनाने वाले सारे हथकंडे पर नजर रखें और बहकावे में ना आएं। और जो अच्छा लगे खरीदे, जहां से अच्छा लगे, खरीदते रहे। सरकार की नकेल अपने हाथ में रखें। अपनी नकेल सरकार को ना दें। हां, जीवन शैली को थोड़ी slow कर दें तो सब के लिए अच्छा है।

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