ईद उल–फ़ित्र या फिर की ईद क्या होता है?
ईद अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है त्योहार या खुशी। मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं। जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये रमजान के बाद आने वाले 10 वें इस्लामी महीने शवाल अल-मुकर्रम्म की पहली तारीख को मनाया जाता है।इस्लाम के धर्म के के अनुसार साल में दो ईद का त्यौहार आता है पहला जो रमजान महीने के खत्म होने पर जिसे ईद उल फितर के नाम से भी जाना जाता है और दूसरा ईद उल अजहा जिसे आमतौर पर कुर्बानी के नाम से भी जाना जाता है
इस्लाम धर्म में रमजान के महीने का एक खास महत्व है। मुस्लिम मान्यता के हिसाब से कुरान शरीफ जो कि मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ है वह किताब इसी रमजान के महीने में दुनिया में भेजा गया। मुसलमान रमजान के महीने को बरकतों का महीना मानते हैं और इसमें खूब सारी इबादत तथा दिल खोल कर गरीबों की मदद करते हैं।
इस्लाम धर्म के 5 बुनियादी स्तंभों में से उपवास या रोजा रखना एक स्तंभ है। रमजान के महीने में मुसलमान सूरज निकलने से पहले से लेकर शाम के सूरज डूबने तक बिना कुछ खाए पिए व्रत रखते हैं। रमजान के महीने में अल्लाह इस पृथ्वी पर इंसानों के लिए खास रहमत भेजता है।
मुसलमान धर्म के अनुयायि यह मानते हैं इस रमजान के महीने में किया गया छोटा से छोटा पुण्य का काम कम से कम 70 गुना ज्यादा पुण्य के बराबर हो जाता है।
इस्लाम धर्म का एक और स्तंभ है जकात देना अर्थात हर एक मुसलमान जो हैसियत वाला हो वह अपने माल और दौलत का ढाई प्रतिशत गरीबों को दान में दे देता है। आपको जानकर हैरानी होगी की जकात पूरी दुनिया में दिया जाने वाला सबसे बड़ा दान होता है जिसमें खरबों रुपए असली गरीब तक बिना किसी को ढिंढोरा पीते हुए पहुंचा दिया जाता है।
मुसलमान यह मानते हैं कि रमजान के महीने में किया गया छोटा से छोटा काम भी बहुत ज्यादा पुण्य देता है इसी वजह से दिन में 5 बार नमाज पढ़ने के अलावा भी अलग से एक तरावीह की नमाज में पढ़ते हैं और रात को उठकर तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते हैं।
क्या होता है तरावीह की नमाज?
अल्लाह से बहुत ज्यादा नेकी और पुण्य के उम्मीद में मुसलमान दिन में हर रोज पढ़े जाने वाले पांच नमाजो के अलावा एक अलग से तरावीह की नमाज पढ़ता है जिसमें वह यह उम्मीद करता है कि अल्लाह उसके द्वारा जाने अनजाने में किए गए गुनाहों और भूल चूक को माफ कर देगा और उसे जन्नत में जगा देगा
क्या होता है तहज्जुद का नमाज?
यह एक खास तरह का नमाज है जो मुस्लिम पढ़ते हैं। रात को जब पूरी दुनिया नींद से सोती है तो मुसलमान रात को अकेले में जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं। एक तरह से यह इतनी पवित्र और खालिस इबादत होती है जिसकी जानकारी अल्लाह और उस अल्लाह के बंदे के अलावा किसी को नहीं रहती है। कोई और नहीं जानता कि वह अल्लाह की इबादत भी कर रहा है । ऐसा माना जाता है कि तहज्जुद की नमाज में जो दुआ भी मांगी जाती है वह कबूल हो जाती है इस वजह से खासतौर पर रमजान की रात में मुसलमान जागकर खूब अल्लाह की इबादत करते हैं और अपने जाने अनजाने में किए गए गुनाहों की माफी मांगते हैं। क्योंकि किसी और को इस इबादत का पता भी नहीं होता इसलिए इस तरह पढ़ी गई नमाज का एक अलग ही रुतबा है
इस असल वजह से मनाया जाता है ईद का त्यौहार
अब मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे 1 महीने इतनी अच्छी तरह से इबादत करने की वजह से बहुत खुश होते हैं और वह अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं की अल्लाह ने उन्हें यह तौफीक बख्शी के वह रमजान के पूरे महीने के रोजे रख सके और साथ ही गरीबों की मदद कर सके और साथ ही इतनी इबादत करके पुण्य कमा सके।
इसी खुशी का इजहार करने के लिए तथा अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए ईद उल फितर का त्योहार मनाया जाता है