भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता: अपेक्षाएं, वादे और वास्तविकता

भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता: अपेक्षाएं, वादे और वास्तविकता
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां राजनीतिक प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी और जागरूकता का सीधा असर देश के भविष्य पर पड़ता है। पिछले कुछ दशकों में भारतीयों की राजनीतिक जागरूकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां और अंतराल मौजूद हैं। इस लेख में हम भारतीयों की राजनीतिक जागरूकता, उनकी अपेक्षाओं, राजनेताओं के वादों और वास्तविकता के बीच के अंतर को विस्तार से समझेंगे।
भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता का विकास
भारत में राजनीतिक जागरूकता का स्तर पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 67% मतदान दर दर्ज की गई, जो देश के इतिहास में सबसे अधिक में से एक है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारतीय मतदाता अब राजनीतिक प्रक्रियाओं में अधिक सक्रिय और जागरूक हो रहे हैं।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने इस जागरूकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आजकल, युवा और शिक्षित वर्ग न केवल राजनीतिक घटनाओं पर नजर रखता है, बल्कि उन पर चर्चा और विश्लेषण भी करता है। हालांकि, ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में अभी भी जागरूकता का स्तर कम है, जहां शिक्षा और सूचना तक पहुंच सीमित है।
जनता की अपेक्षाएं: विकास, रोजगार और सुरक्षा
भारतीय मतदाताओं की प्रमुख अपेक्षाएं स्पष्ट हैं: विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एसोचैम द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार, 60% से अधिक मतदाताओं ने रोजगार और आर्थिक विकास को अपनी प्राथमिकता बताया। इसके अलावा, महिला सुरक्षा, स्वच्छता और बुनियादी ढांचे के विकास को भी लोगों ने महत्वपूर्ण मुद्दे माना।
युवाओं की अपेक्षाएं और भी स्पष्ट हैं। भारत में 65% आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है, और यह वर्ग नौकरियों, शिक्षा और तकनीकी विकास पर जोर देता है। हालांकि, बेरोजगारी दर (2023 में लगभग 7.8%) और शिक्षा की गुणवत्ता में कमी जैसे मुद्दे अभी भी बने हुए हैं।
राजनेताओं के वादे और वास्तविकता
राजनीतिक दल और नेता चुनावों के दौरान तरह-तरह के वादे करते हैं, लेकिन इन वादों का कितना हिस्सा वास्तव में पूरा हो पाता है, यह एक बड़ा सवाल है। उदाहरण के लिए, 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने “सबका साथ, सबका विकास” का नारा दिया और 2 करोड़ नौकरियों के सृजन का वादा किया। हालांकि, 2023 तक यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका है।
इसी तरह, कांग्रेस ने 2009 के चुनाव में महंगाई पर नियंत्रण और गरीबी उन्मूलन के वादे किए थे, लेकिन ये मुद्दे अभी भी प्रासंगिक बने हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में लगभग 22% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही थी।
राजनीतिक जागरूकता और जवाबदेही
राजनीतिक जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ जनता ने राजनेताओं से जवाबदेही की मांग भी शुरू कर दी है। आज के मतदाता केवल वादों से संतुष्ट नहीं होते, बल्कि वे परिणाम चाहते हैं। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम और सोशल मीडिया ने लोगों को सरकार और नेताओं के कामकाज पर सवाल उठाने का मंच दिया है।
हालांकि, अभी भी कई मामलों में राजनेता जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। उदाहरण के लिए, किसानों के आंदोलन और युवाओं की बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार की प्रतिक्रिया अक्सर धीमी और अपर्याप्त रही है।
राजनेताओं को क्या करना चाहिए?
- वादों को पूरा करने की ईमानदार कोशिश: राजनेताओं को चुनावी वादों को पूरा करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। योजनाओं को लागू करने में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
- जनता से संवाद: नेता जनता के साथ नियमित संवाद बनाए रखें और उनकी समस्याओं को सुनें। ग्राम सभाओं और टाउन हॉल मीटिंग्स के माध्यम से लोगों से जुड़ना चाहिए।
- शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा: राजनीतिक दलों को शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए, ताकि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में पता चल सके।
- युवाओं पर ध्यान: युवाओं को रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए ठोस नीतियां बनानी चाहिए।
निष्कर्ष
भारतीयों की राजनीतिक जागरूकता निस्संदेह बढ़ी है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। राजनेताओं को जनता की अपेक्षाओं को समझना होगा और उन्हें पूरा करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना होगा। वादों और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने के लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा। केवल तभी भारत एक सशक्त और समृद्ध लोकतंत्र बन सकता है।
स्रोत:
- भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India)
- एसोचैम सर्वे 2019
- विश्व बैंक रिपोर्ट 2022
- सूचना का अधिकार (RTI) डेटा
- नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) रिपोर्ट 2023
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