Opinion

बाबा साहेब डॉ० भीमराव अंबेडकर, एक अबूझ पहेली


सिंबल ऑफ नॉलेज बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति केएक दलित परिवार में हुआ वे अपने माता-पिता के 14 वे संतान थे वर्तमान में उस जिला का नाम अंबेडकर नगर है

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बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में यह कहा था किया संविधान कितना भी अच्छा क्यों ना हो लेकिन इसको अमल में लाने वाले अगर अच्छे नहीं हो तो उनको बहुत सारी कमियां संविधान में नजर आएंगी
यह बाबा साहेब की विद्युता और दूरदर्शिता थी कि उन्होंने उसी समय समझ लिया था जो आज देखने में आ रहा है जो अपने बौद्धिकता को संविधान से ऊपर समझ रहे हैं

बाबासाहेब ने असहनीय दुखों का सामना किया लेकिन अपनी पढ़ाई जारी रखी जिस समय उनका दाखिला एलीफेंटर्न स्कूल में हुआ था उस समय के वह पहले दलित है जिनका दाखिला उस विद्यालय में हुआ था और छुआछूत इतने चरम पर था कि उनको विद्यालय से निकाल कर बाहर फेंक दिया जाता था विद्यालय में बैठने नहीं दिया जाता पानी पीने के लिए भी उनको ग्लास नहीं दिया जाता था तथा जिस दिन विद्यालय का चपरासी नहीं आता था उनको दिन दिन भर बिना पानी पिए हुए ही रहना पड़ता था और यह वही तक सीमित नहीं रहा बल्कि बाबासाहेब जब अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी करके और भारत लौटे तब उनको‌ बरोदा के जो राजा थे उनके आग्रह पर एक उच्च पद ग्रहण किया लेकिन वहां भी उनको उस गिलास में पानी नहीं दिया जाता था जिसमें दूसरे अधिकारी पानी पीते थे तथा जो वहां के चपरासी थे वह भी अपने आप को उच्च वर्ग का होना समझ कर और उनको पानी नहीं पिलाया करते थे

जब बाबासाहेब उस विद्यालय से चौथी क्लास पास किए थे तब दलित समाज के द्वारा उनको बहुत सारे उपहार दिए गए थे जिसमें बुद्ध की प्रतिमा भी थी परिस्थिति देखिए की एक दलित बच्चा चौथी क्लास पास करता है तब जश्न मनाया जाता है लेकिन आज बाबासाहेब के द्वारा ही दी गई व्यवस्था के तहत लाखों लोग पीएचडी तक की डिग्रियां लेते हैं फिर भी कोई जश्न नहीं होता और ना ही वह कमाल कर पाते हैं जो बाबासाहेब ने किया

बाबासाहेब केवल भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका तथा ब्रिटेन के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट किया
उनकी पकड़ भारतीय भाषाओं के अलावा जर्मन फ्रेंच अंग्रेजी पर भी सामान्य रूप से थी
तथा उनके विद्युता की ख्याति विदेश के विद्वानों में भी थी
इन्हीं कारणों से जब भारतीयो को संविधान बनाने के लिए अंग्रेज शासन के द्वारा कहां गया तब भारत के सत्ताधीसो ने देश विदेश के अनेकों विद्वान से भारत की संविधान निर्माण में योगदान के लिए कहा तब उन्हें विदेशी विद्वानों के द्वारा भी बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम सुझाया गया लेकिन देश के जातिवाद के पूर्वाग्रहों से ओतप्रोत तथाकथित विद्वानों ने उनको संविधान सभा में लेने से इनकार किया
#तब के कांग्रेस के अध्यक्ष सरदार पटेल ने यह कहा कि संविधान निर्माण की प्रक्रिया में अंबेडकर के लिए दरवाजे ही नहीं बल्कि खिरकिया भी बंद कर दी जाएगी#)
तब बाबा साहब ने अपने विद्युता का परिचय देते हुए मुस्लिम लीग के सहयोग से बंगाल के फरीदाबाद से संविधान सभा के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और जितने भी प्रत्याशी विजई हुए थे संविधान सभा के लिए उनमें सभी से ज्यादा मतों से विजय प्राप्त किया
और उसी जीत का खामियाजा वहां के कंसिस्टेंसी के 55 परसेंट हिंदुओं की आबादी वाले उस कंसिस्टेंसी को बंटवारे के समय पाकिस्तान के हिस्से में दे दिया गया और वहां के जो प्रीवी काउंसिल के मेंबर थे जो देश के एकमात्र बैरिस्टर दलित नेता थे जो बाद में पाकिस्तान के कानून मंत्री बने

बाबासाहेब ने कई किताबें लिखी हैं उनको हम सभी को पढ़ने की आवश्यकता है बाबा साहेब का जब देहावसान हुआ था उस समय उनके लाइब्रेरी में लगभग देसी और विदेशी भाषाओं को मिलाकर 50,000 पुस्तके थी जो दुनिया के किसी भी व्यक्ति के निजी लाइब्रेरी में नहीं थी

साथियों हमको बाबासाहेब को पूजने से ज्यादा उनके बताए हुए रास्ते पर चलना होगा तथा उनके संघर्षों को अपने जीवन में भी उतारना होगा यही बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को समर्पित सच्ची श्रद्धांजलि होगी
///The father of constitution Doctor Bheemrav Ambedkar///

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